Physics Handwritten Notes in Hindi PDF

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भौतिक विज्ञान, प्रकृति के संचालन, गतिविधियों, ऊर्जा, मापन, तंत्रों, रेखांकन, रासायनिक प्रक्रियाओं और संरचनाओं का अध्ययन करता है। Physics Handwritten Notes in Hindi PDF  में विशेष रूप से उन सिद्धांतों, नियमों, और संरचनाओं के अध्ययन को संबोधित करता है, जो प्रकृति की आवाजाही को वर्णित करते हैं। इसमें ( भौतिक विज्ञान ) Physics Handwritten Notes PDF in Hindi में आसमानी गतिविधियों, बारूद, विद्युत, वैविध्यकरण, उच्च तापमान, तरंग, इलेक्ट्रॉनिक विन्यास, विकिरण और चालकता आदि जैसी विभिन्न विषयों को शामिल किया जाता है।

भौतिक विज्ञान अन्य शाखाओं के विश्व के समझने में मदद करता है। इसका उपयोग संचार, विज्ञान, आधुनिक तकनीक, विद्युत, उर्जा उत्पादन, रोग निदान, सुरक्षा और बहुत कुछ में किया जाता है। इस विज्ञान के समझने से हम अपनी प्रकृति को बेहतर समझ सकते हैं और उसका अध्ययन और विकास कर सकते हैं।

प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी का एक मूल विषय भौतिकी है। भौतिकी को अंग्रेजी में Physics कहते हैं जो ग्रीक भाषा के एक शब्द Pheusis से व्युत्पन्न हुआ है, जिसका अर्थ है ‘प्रकृति’ । दूसरी ओर हिन्दी शब्द ‘भौतिकी’ संस्कृत के शब्द ‘भौतिक’ से बना है, जिसका अर्थ है ‘प्राकृतिक’ । इस प्रकार भौतिकी का अध्ययन विषय Physics Handwritten Notes in Hindi PDF प्रकृति है ।

अतः हम कह सकते हैं कि “भौतिकी वह विज्ञान है जिसके अंतर्गत प्रकृति और उसकी घटनाओं का अध्ययन किया जाता है।” परन्तु यह भौतिकी की एक व्यापक परिभाषा है क्योंकि प्रकृति में तो सबकुछ समाहित है। प्रकृति द्रव्य और ऊर्जा का ही खेल है । अतः Physics Handwritten Notes in Hindi PDF की विषय-वस्तु को अधिक स्पष्ट करने वाली परिभाषा कुछ इस प्रकार दी जा सकती है—“भौतिकी, विज्ञान की वह शाखा है |

जिसके अंतर्गत द्रव्य, ऊर्जा तथा उनकी अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।” अन्तर्क्रिया के फलस्वरूप होनेवाले रासायनिक परिवर्तन भौतिकी के क्षेत्र में नहीं आते, इनका अध्ययन रसायन विज्ञान में किया जाता है। Physics Handwritten Notes in Hindi PDF के अंतर्गत हम विविध भौतिक परिघटनाओं की व्याख्या कुछ संकल्पनाओं एवं नियमों के पदों में करने का प्रयास
करते हैं।

भौतिकी हस्तलिखित नोट्स पीडीएफ हिंदी में विभिन्न प्रकार के प्रयोगों का विश्लेषण करता है जिनमें विद्युत, इलेक्ट्रॉनिक्स, मैग्नेटिज्म, ताप, ध्वनि, तरंग, विकिरण, ऊर्जा और मापन शामिल होते हैं। यह विज्ञान प्रकृति की सिद्धांतों, नियमों, और उनके अनुपालन के आधार पर बनाई गई मशीनों, उपकरणों और तंत्रों का भी अध्ययन करता है।

भौतिक विज्ञान (Physics Handwritten Notes) के कुछ महत्वपूर्ण उपविषय निम्नलिखित हैं:-

  1. मैकेनिक्स – गति, समतल विश्लेषण, बल, आदि की अध्ययन।
  2. ताप विज्ञान – ऊष्मा विसंगति, विद्युत ऊष्मा जनकता, उष्मागतिकी, आदि।
  3. विद्युत विज्ञान – विद्युत चालकता, विद्युत धारा, विद्युत संचार, विद्युत उत्पादन आदि।
  4. ध्वनि विज्ञान – ध्वनि तरंगों, उनके गुणों, अवकाश, आदि की अध्ययन।
  5. अणु विज्ञान – परमाणु संरचना और उनके बदलाव, आदि की अध्ययन।
  6. भौतिकीय रेखांकन – अलग-अलग भौतिक मापक और तंत्रों के उपयोग
  7. ऊर्जा विज्ञान – ऊर्जा के रूपों का अध्ययन, ऊर्जा के स्रोत, ऊर्जा उत्पादन और ऊर्जा के उपयोग के बारे में जानकारी।
  8. भौतिक विज्ञान और रोचक तथ्य – यह उन सभी चीजों को शामिल करता है जो हमारे लिए उल्लंघनीय लगती हैं, जैसे कि धरती की गति, अंतरिक्ष, तापमान, आदि।
  9. न्यूनतम द्रव्यमान विज्ञान – न्यूनतम द्रव्यमान विज्ञान का उपयोग क्वांटम मैकेनिक्स जैसी भौतिक संरचनाओं को अध्ययन करने में किया जाता है।
  10. तरंग विज्ञान – तरंगों के उत्पादन, प्रसारण, रोकथाम, उनके प्रयोग और उनके विभिन्न रूपों के बारे में अध्ययन।

भौतिक विज्ञान विषय समूह विभिन्न अनुसंधान क्षेत्रों के साथ संबद्ध होते हैं जैसे विज्ञान और प्रौद्योगिकी, मैटेरियल साइंस, न्यूक्लियर फिजिक्स, इलेक्ट्रॉनिक्स आदि। भौतिक विज्ञान मानव जीवन और आधुनिक प्रौद्योगिकी के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Physics Handwritten Notes PDF Topics:-

सामान्य भौतिकी

1. मात्रक एवं विमा
2.अदिश एवं सदिश राशियाँ
3. सरल रेखा में गति
4. गति के नियम
5. प्रक्षेप्य गति
6. वृत्तीय गति
7. घर्षण

8.कार्य शक्ति और ऊर्जा
9. संघट्ट या टक्कर
10. घूर्णन गति एवं जड़त्व आघूर्ण
11. गुरुत्वाकर्षण
12. प्रत्यास्थता

कार्य, शक्ति एवं ऊर्जा

13. तरल दाब
14. श्यानता तथा द्रवों का प्रवाह
15. पृष्ठ तनाव
16. दोलन

ऊष्मा

17. तापमिति
18. ऊष्मीय प्रसार
19. कैलोरीमिति
20. ऊष्मा का संचरण
21. ऊष्मागतिकी
22. गैसों का अणुगति सिद्धान्त

ध्वनि

23. तरंग गति
24. तरंगों का अध्यारोपण
25. ध्वनि की चाल
26. वायु स्तम्भों का कम्पन
27. डोरियों का कम्पन
28. डॉप्लर प्रभाव
29. सुस्वर ध्वनि एवं पराश्रव्य ध्वनि

स्थिर वैद्युतिकी

30. वैद्युत आवेश एवं वैद्युत क्षेत्र
31. गॉस का प्रमेय
32. वैद्युत धारिता

33. वैद्युत चालन
34. ओम का नियम
35. वैद्युत वाहक बल एवं वैद्युत सेल
36. किरचॉफ के नियम और व्हीटस्टोन सेतु
37. विभवमापी
38. विद्युतधारा का ऊष्मीय प्रभाव
39. विद्युतधारा का रासायनिक प्रभाव
40. विद्युतधारा का चुम्बकीय प्रभाव
41. विधुतीय यंत्र

चुम्बकत्व

42. चुम्बकीय क्षेत्र
43. पदार्थ के चुम्बकीय गुण एवं पार्थिव चुम्बकत्व
44. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण
45. प्रत्यावर्ती धारा

प्रकाश

46. प्रकाश का परावर्तन
47. प्रकाश का अपवर्तन
48. गोलीय सतह और लेंसों द्वारा अपवर्तन
49. प्रिज्म तथा प्रकाश का प्रकीर्णन
50. प्रकाशकीय यंत्र
51. मानव-नेत्र एवं दृष्टि-दोष
52. प्रकाश का तरंग सिद्धान्त
53. प्रकाश का व्यतिकरण तथा विवर्तन
54. प्रकाश का ध्रुवण
55. प्रकाशमिति

आधुनिक भौतिकी

56. विकिरण तथा द्रव्य की द्वैत प्रकृति
57. विद्युत चुम्बकीय तरंगें
58. परमाणु की संरचना
59. रेडियोसक्रियता
60. नाभिकीय विखण्डन एवं संलयन
61, अर्द्धचालक, डायोड तथा ट्रांजिस्टर
62. अंकीय इलेक्ट्रॉनिक तथा लॉजिक गेट्स

 

1. मात्रक एवं विमा Physics Topic:-

1. भौतिक राशियां :- भौतिक राशियां वे हे जिनके पदों में हम भौतिकी के नियमो को व्यक्त करते हैं; जैसे- द्रव्यमान, लंबाई, समय, कार्य, बल, ऊर्जा इत्यादि । भौतिक राशियाँ दो प्रकार की होती हैं-

1.1 मूल राशियाँ (Fundamental quantities) :- वे भौतिक राशियाँ जो अन्य किसी राशि पर निर्भर नहीं करती हैं, मूल राशि कहलाती हैं । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर द्रव्यमान, लम्बाई एवं समय को मूल राशियाँ माना जाता है। वास्तव में मूल राशियाँ सात हैं।

1.2 व्युत्पन्न राशियाँ (Derived quantities):- व्युत्पन्न राशियाँ वे हैं जो मूल राशियों के पदों में व्यक्त की जाती हैं; जैसे-वेग, बल, संवेग, कार्य आदि ।

2.मात्रक (Unit) :- किसी राशि के मापन के निर्देश मानक को मात्रक कहते हैं। मात्रक दो प्रकार के होते हैं-

2.1 मूल मात्रक (Fundamental unit):- वह मात्रक जो किसी अन्य मात्रक पर निर्भर नहीं करता, उसे मूल मात्रक कहते हैं। ये मात्रक एक-दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। सात मूल राशियों के मात्रक मूल मात्रक कहलाते हैं।

2.2 व्युत्पन्न मात्रक (Derived unit):- वह मात्रक जो मूल मात्रक की सहायता से व्यक्त किया जा सके, व्युत्पन्न मात्रक कहलाते हैं।

3. मात्रक की पद्धतियाँ (Systems of unit):- (i) सेन्टीमीटर-ग्राम-सेकेण्ड (C.G.S.) पद्धति, (ii) फुट- पाउण्ड सेकेण्ड (F.P.S.) पद्धति, (iii) मीटर-किलोग्राम सेकेण्ड
(M.K.S.) पद्धति, (iv) अंतर्राष्ट्रीय पद्धति (S.I.).)

SI मात्रक में सात मूल मात्रक हैं, जो नीचे सारणी में दिये गये हैं—
मूल राशि
1. द्रव्यमान -किलोग्राम- kg
2. लम्बाई – मीटर – m
3. समय – सेकेण्ड – s

2.अदिश एवं सदिश राशियाँ Topics of Physics Notes PDF:-

1. भौतिक राशियों को मुख्यतः दो वर्गों में विभाजित किया गया है…

1.1 अदिश राशियाँ (Scalar quantities):- एक अदिश राशि वह राशि है जिसमें मात्र परिमाण होता है। इसे केवल एक संख्या एवं उचित मात्रक द्वारा पूर्ण रूप से व्यक्त किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- द्रव्यमान, समय, लंबाई, ताप, ऊर्जा, दाब, विशिष्ट ऊष्मा, विद्युत आवेश, विद्युत धारा, विभव, आवृत्ति आदि ।

1.2 सदिश राशियाँ (Vector quantities):- एक सदिश राशि वह राशि है जिसमें परिमाण तथा दिशा दोनों होते हैं तथा वह योग संबंधी त्रिभुज के नियम अथवा समानान्तर चतुर्भुज के योग संबंधी नियम का पालन करती है। उदाहरणार्थ-विस्थापन, वेग, त्वरण, बल, बल-आघूर्ण, संवेग, आवेग, कोणीय विस्थापन, कोणीय वेग, चुम्बकीय क्षेत्र प्रेरण, चुम्बकीय क्षेत्र तीव्रता, चुम्बकन तीव्रता, चुम्बकीय आघूर्ण-विद्युत तीव्रता, विद्युत धारा घनत्व, विद्युत ध्रुवण, चाल प्रवणता, ताप प्रवणता आदि ।

सदिश संबंधी कुछ मौलिक परिभाषाएँ :- 

2. एकांक सदिश (Unit vector) :- एकांक सदिश वह सदिश होता है जिसका परिमाण एक हो तथा जो किसी विशेष दिशा के अनुदिश हो । एकांक सदिश की विमा एवं मात्रक नहीं होती है। मात्र दिशा व्यक्त करने के लिए इसका उपयोग होता है। आयतीय निर्देशांक निकाय की X, Y एवं Z अक्षों के अनुदिश एकांक सदिशों को हम क्रमशः i, j तथा k द्वारा व्यक्त करते हैं।
{|i|-|j|-|k|-1}

3. तुल्य सदिश (Equal vector):- वैसे सभी समांतर सदिश जिनके परिमाण एवं दिशाएँ समान होती हैं, तुल्य सदिश कहे जाते हैं।

4. विपरीत या ऋणात्मक सदिश (Opposite or negative vector):- यदि दो सदिश एक-दूसरे के समांतर तथा परिमाण में समान हों परन्तु दिशा में एक-दूसरे के विपरीत हों तो वे एक-दूसरे के विपरीत सदिश कहे जाते हैं।

5. शून्य सदिश (Null vector) :- शून्य परिमाण के सदिश को शून्य सदिश कहा जाता है तथा इसे O से व्यक्त किया जाता है।

3. सरल रेखा में गति Physics Notes PDF Topic:-

विराम एवं गति (Rest and Motion)

1.1 विराम:- जब किसी निर्दिष्ट बिन्दु (Fixed point) के सापेक्ष किसी वस्तु की स्थिति समय के साथ नहीं बदलती है तो उसे विराम की अवस्था में कहा जाता है।

1.2गति :- जब किसी वस्तु की स्थिति निर्दिष्ट बिन्दु (Fixed point) के सापेक्ष समय के साथ लगातार बदलती रहती है तो उसे गति की अवस्था में कहा जाता है।

1.3 सरल रेखीय गति :- जब एक वस्तु एक सरल रेखा के अनुदिश गति करती है, तो इस प्रकार की गति को सरल रेखीय गति कहते हैं। गति का सबसे साधारण प्रकार सरल रेखीय गति है।

2. दूरी (Distance) :- वस्तु द्वारा किसी समय अंतराल में तय किये गये मार्ग की सम्पूर्ण लम्बाई को दूरी कहते हैं। यह सदैव धनात्मक होती है। यह एक अदिश राशि है । इसका SI मात्रक मीटर है।

3. विस्थापन (Displacement):- वस्तु की प्रारंभिक व अंतिम स्थिति के बीच की न्यूनतम दूरी को वस्तु का विस्थापन कहते हैं। विस्थापन का परिमाप धनातमक या ऋणात्मक या शून्य हो सकता है। यह एक सदिश राशि है। विस्थापन कभी भी दूरी से बड़ा नहीं हो सकता है।

4. चाल (Speed):-  वस्तु की गति की दिशा के निरपेक्ष, इकाई समय में वस्तु द्वारा चली गई दूरी को वस्तु की चाल कहते हैं। चाल एक अदिश राशि है। इसका SI मात्रक मी० /से० होता है ।

4. Physics Notes Topic गति के नियम :-

1. जड़त्व का नियम (Law of Inertia) :- कोई पिंड अपनी विरामावस्था या एकसमान गति की अवस्था अथवा गति की दिशा बदलने में असमर्थ रहता है, जब तक कि इस पर कुछ बाह्य बल आरोपित न किया जाए पिंड की यह असमर्थता ही जड़त्व कहलाती है।

नोट: (a) गैलीलियो ने जड़त्व का नियम दिया।
(b) पिंड का द्रव्यमान ही जड़त्व की माप है।

2. न्यूटन के गति का प्रथम नियम (Newton’s first law of motion) :- यदि कोई वस्तु विरामावस्था में है तो विरामावस्था में ही रहेगी और यदि गतिमान अवस्था में है तो गतिमन अवस्था में ही रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाह्य बल न लगाया जाए।

2.1 न्यूटन के गति का प्रथम नियम और जड़त्व का नियम समान है इसीलिए न्यूटन के गति नियम को जड़त्व का नियम या गैलीलियो का नियम भी कहा जाता है।

2.2 बल की परिभाषा न्यूटन के गति के प्रथम नियम से प्राप्त होती है।

3. बल (Force) बल वह भौतिक कारक है जो किसी पिंड पर लगकर उसकी अवस्था में परिवर्तन करती है या परिवर्तन करने की चेष्टा करती है । बल का SI मात्रक न्यूटन (newton or N) होता है और

C.G.S. इकाई डाइन होती है ।

1N = 105 डाइन

SI पद्धति में बल की गुरुत्वीय इकाई किलोग्राम भार (kgwt) या किलोग्राम बल (kgF) है ।

3.1 बल की निरपेक्ष इकाई का मान सभी जगह समान है परन्तु बल की गुरुत्वीय इकाई अलग-अलग स्थानों एवं ग्रहों के साथ परिवर्तित होती रहती है, क्योंकि यह 8 के मान पर निर्भर करती है।

3.2 गुरुत्वीय इकाई निरपेक्ष इकाई से 8 गुना होती है।

4. संवेग (Momentum) :- वस्तु द्वारा संग्रहित गति की मात्रा संवेग कहलाती है। वस्तु का संवेग उसके द्रव्यमान तथा वेग के गुणनफल के तुल्य होता है।

संवेग • द्रव्यमान x वेग या, P = mx v

संवेग एक सदिश राशि है, इसकी दिशा वेग की दिशा में होती है। संवेग का SI मात्रक किग्रा x मी/सेकेण्ड (kg m/s) होता है।

5. न्यूटन के गति का द्वितीय नियम (Newton’s second law of motion) :-  इस नियम के अनुसार किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर आरोपित बल के समानुपाती होगी तथा इसके परिवर्तन की दिशा आरोपित बल की दिशा के अनुदिश होगी।

F =ma

6. आवेग (Impulse) :- जब कोई बड़ा बल किसी वस्तु पर थोड़े समयान्तराल के लिए लगता है तो बल तथा समयान्तराल के गुणनफल को आवेग कहते हैं। आवेग वस्तुतः बल की क्रिया का मात्रक है। इसे J से सूचित किया जाता है। यह एक सदिश राशि है।
j = FAt

आवेग का SI इकाई न्यूटन-सेकेण्ड होता है। आवेग, संवेग में परिवर्तन के बराबर होता है।
F x Δt = ΔΡ

7. न्यूटन के गति विषयक तृतीय नियम (Newton’s third law of motion) :- इस नियम के अनुसार, “प्रत्येक क्रिया की सदैव समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है।” न्यूटन के गति विषयक तृतीय नियम में निम्न तथ्य निहित है :

(a) क्रिया तथा प्रतिक्रिया कभी भी एक वस्तु पर कार्य नहीं करते हैं।

(b) बलों का अस्तित्व हमेशा जोड़ा में होता है ।

(c) क्रिया और प्रतिक्रिया मान में बराबर, परन्तु दिशा में विपरीत होते हैं ।
(d) दोनों बलों में से किसी एक बल को क्रिया तथा दूसरे बल को प्रतिक्रिया माना जा सकता है।

8. रेखीय संवेग संरक्षण का नियम (Law of conservation of linear momentum) :- किसी बाह्य बल की अनुपस्थिति में दो या दो से अधिक पिंडों के समुदाय का सम्पूर्ण रेखीय संवेग नियत रहता है। इसे रेखीय संवेग संरक्षण का नियम कहते हैं ।

इस नियम के अनुसार : P + P, = नियतांक

(दो वस्तुओं के समुदाय के लिए)

5. भौतिक विज्ञानं के घर्षण टॉपिक्स के बारे में :-

1. वस्तुओं का वह गुण जिसके कारण सम्पर्क में आने पर वे अपनी आपेक्षिक गति (Relative motion) का विरोध करती हैं; घर्षण कहलाता है। घर्षण बल वह बल है जो दो वस्तुओं के मध्य आपेक्षिक गति का (या आपेक्षिक गति की प्रकृति का) विरोध करता है और जो कि सम्पर्क सतह के स्पर्श रेखीय दिशा में कार्य करता है। घर्षण बल का मुख्य कारण दोनों वस्तुओं की सम्पर्क सतहों के परमाणुओं (atoms) तथा अणुओं (Molecules) के बीच लगने वाला वैद्युत चुम्बकीय बल (electromagnetic force) है। सतह की अनियमितता एवं आणविक बलों के कारण ही घर्षण की उत्पत्ति होती है।

2. स्थैतिक घर्षण (Static friction) :- किसी वस्तु की विरामावस्था में उस पर लग रहे बाह्य बलों को प्रतिसंतुलित करने वाला घर्षण बल, स्थैतिक घर्षण बल
कहलाता है।

3. सीमान्त या चरम घर्षण बल (Limiting force of friction):- स्थैतिक घर्षण का वह अधिकतम मान, जब कोई पिंड किसी सतह पर ठीक फिसलने की स्थिति में आ जाती है, सीमान्त घर्षण बल कहलाता है ।

4. घर्षण के नियम (Laws of friction) :-

4.1 सीमान्त घर्षण बल की दिशा उस दिशा के विपरीत होती है जिस दिशा में वस्तु के गति करने की प्रवृत्ति होती है।

4.2 घर्षण बल सदैव, दो वस्तुओं की सम्पर्क सतह की स्पर्श रेखीय दिशा में कार्य करता है ।

4.3 सीमान्त घर्षण बल का मान (F) अभिलंब प्रतिक्रिया बल (R) के समानुपाती होता है अर्थात् F Re

4.4 दो सतहों के बीच लगने वाला सीमान्त घर्षण बल वस्तुओं की संपर्क सतह के क्षेत्रफल पर निर्भर नहीं करता है जब तक कि अभिलंब प्रतिक्रिया बल समान है।

4.5 सीमान्त घर्षण बल का मान संपर्क सतहों की प्रकृति पर निर्भर करता है ।

5. गतिक घर्षण (Dynamic or kinetic friction) :- गति के दौरान तलों के बीच लगने वाले घर्षण बल को गतिक घर्षण बल (F.) कहते हैं तथा इसका मान सीमान्त स्थैतिक से कम होता है। पिंड पर लगने वाले गतिक नियत रहता है। यह पिंड की चाल पर निर्भर नहीं करता है।

6. कार्य शक्ति और ऊर्जा भौतिक विज्ञानं का टॉपिक :-

कार्य (Work) :- किसी बल द्वारा किया कार्य “बल के विस्थापन की दिशा के अनुदिश घटक और विस्थापन के परिमाण के गुणनफल” के रूप में परिभाषित किया जाता है। दूसरे शब्दों में बल ( F ) तथा (F) विस्थापन (ड) का अदिश गुणनफल कार्य कहलाता है जो एक अदिश राशि है।

1 कार्य की माप :- यदि वस्तु पर F बल लगाने से बल की दिशा में वस्तु का विस्थापन S हो तो वस्तु पर किया गया कार्य W= F·S } अब यदि किसी वस्तु पर बल F इस प्रकार लगता है कि वह बल की दिशा से  कोण पर झुकी  रेखा पर S दूरी से विस्थापित होती है, तो बल द्वारा किया गया कार्य
W = F·S cos6 = F.S
समीकरण W = FS cose में,

नोट: जब कोई वस्तु वृत्ताकार मार्ग पर नियत चाल से गतिमान होती है, तो मार्ग के प्रत्येक बिन्दु पर कार्यरत अभिकेन्द्रीय बल तथा वस्तु का विस्थापन एक-दूसरे के लम्बवत् होते हैं अतः अभिकेन्द्रीय बल द्वारा किया गया कार्य शून्य होता है।

2. परिवर्ती बल (Variable force) :- जब किसी वस्तु पर लगने वाले बल का परिमाण या दिशा या दोनों ही, समय के साथ या वस्तु स्थिति के साथ बदलते हैं तो इस प्रकार के बल को परिवर्ती बल कहते हैं।

2.1 परिवर्ती बल द्वारा किया गया कार्य (Work done by a variable force) :- यदि किसी निश्चित बिन्दु के सापेक्ष किसी वस्तु का प्रारंभिक एवं अंतिम विस्थापन क्रमशः S, एवं S, हो, तो परिवर्ती बल F द्वारा किया गया कार्य

3. कार्य के मात्रक (Units of Work) :- कार्य की SI इकाई जूल एवं C.G.S, इकाई अर्ग है। कार्य की अन्य इकाई eV, MeV, kWh है ।

4. ऊर्जा (Energy):- किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता ऊर्जा कहलाती है। इसकी गणना वस्तु द्वारा किये गये कुल कार्य से होती है। ऊर्जा के मात्रक एवं विमा कार्य के समान ही है। कार्य के समान ऊर्जा भी एक अदिश राशि है। ऊर्जा के प्रकार: ऊर्जा कई प्रकार की होती है जैसे यांत्रिक ऊर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा, प्रकाशीय ऊर्जा, ध्वनि ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा आदि ।

5. गतिज ऊर्जा (Kinetic energy):- किसी वस्तु में उसके गति के कारण संचित ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं। गतिज ऊर्जा सदैव धनात्मक होती है। यह एक अदिश राशि है।

7. भौतिक विज्ञानं में संघट्ट या टक्कर :-

1. संघट्ट या टक्कर (Collision) :- संघट्ट वह प्रक्रिया है जिसमें दो या दो से अधिक स्थूल पिंड ( अथवा आवेशित सूक्ष्म कण) एक-दूसरे से टकराकर अथवा पारस्परिक अन्योन्य प्रक्रिया से प्रभावित होकर अपनी गति का मार्ग बदल देते हैं या किन्हीं दो पिण्डों के बीच अल्प समय के लिए पारस्परिक क्रिया करने वाले पिंडों के संवेग तथा ऊर्जा
बदल जाएँ, संघट्ट कहलाता है।

2. दो पिंडों के टक्कर में जब कोई बाह्य बल नहीं लगता, तो उनका रेखीय संवेग सदैव संरक्षित रहता है, परन्तु टक्कर के बाद उनकी गतिज ऊर्जा में परिवर्तन हो सकता है। टक्कर में गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है कि नहीं, इसके आधार पर संघट्ट को निम्न वर्गों में वर्गीकृत किया गया है-

2.1 पूर्णतः प्रत्यास्थ संघट्ट (Perfectly elastic collision):- वे संघट्ट जिनमें निकाय का संवेग तथा यांत्रिक ऊर्जा दोनों संरक्षित रहते हैं, पूर्णतः प्रत्यास्थ संघट्ट कहलाते हैं। पूर्णतया प्रत्यास्थ संघट्ट एक दुर्लभ घटना है किन्तु परमाणुओं, अणुओं एवं मूल कणों के बीच टक्कर लगभग पूर्णतः प्रत्यास्थ संघट्ट है। पूर्णतः प्रत्यास्थ संघट्ट की निम्न विशेषताएँ होती हैं—

(a) निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है ।
(b) निकाय की कुल यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(c) निकाय की कुल गतिज ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(1) संघट्ट में पिंडों पर एक-दूसरे द्वारा आरोपित बल संरक्षी बल होते हैं ।

2.2 अप्रत्यास्थ संघट्ट (Inelastic collision):- वे संघट्ट जिनमें निकाय का संवेग तो संरक्षित रहता है, लेकिन यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित नहीं रहती, अप्रत्यास्थ संघट्ट कहलाते हैं। अप्रत्यास्थ संघट्ट में गतिज ऊर्जा की हानि ऊष्मा, ध्वनि या प्रकाशीय ऊर्जा के रूप में होती है । दैनिक जीवन में घटित होने वाले संघट्टे ज्यादातर अप्रत्यास्थ होती हैं।

2.3 पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट (Perfectly Inelastic collision):- वे संघट्ट जिनमें टकराने पर दोनों पिंड परस्पर जुड़ जाए तथा दोनों ही एकसमान वेग से गति करे, पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट कहलाते हैं। इस संघट्ट में निकाय का संवेग तो संरक्षित रहता है, लेकिन यांत्रिक ऊर्जा में हानि अधिकतम होती है। उदाहरण के लिए बंदूक की गोली का रेत की थैली में घुसकर या लकड़ी के गुटके में फँसकर रह जाना पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट है। पूर्णतः अप्रत्यास्थ संघट्ट की विशेषताएँ :

(a) निकाय का कुल संवेग संरक्षित रहता है।
(b) निकाय की कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है।
(c) निकाय की गतिज ऊर्जा (यांत्रिक ऊर्जा) में अधिकतम हानि होती है। यानी यांत्रिक ऊर्जा संरक्षित नहीं रहती है।

8. गुरुत्वाकर्षण Topic of Physics :- 

1. ग्रहों की गति संबंधी केप्लर के नियम (Kepler’s laws of Planetary motion)
1.1 प्रथम नियम: कक्षाओं का नियम (law of orbits) :- सभी ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं तथा सूर्य उस कक्षा के एक फोकस पर स्थित होता है।

1.2 द्वितीय नियम: क्षेत्रफलों का नियम (law of areas): किसी भी ग्रह को सूर्य से मिलाने वाली रेखा समान समय- अन्तरालों में समान क्षेत्रफल तय करती है अर्थात् प्रत्येक
ग्रह की क्षेत्रीय चाल नियत रहती है।

इस नियम के अनुसार, क्षेत्रफल SAB = क्षेत्रफल SCD

इस नियम का यह भी अर्थ है कि जब ग्रह सूर्य से दूरस्थ होता है तो उसकी चाल न्यूनतम होती है तथा जब वह सूर्य के समीपस्थ होता है तो उसकी चाल अधिकतम होती है।

1.3 तृतीय नियम : परिक्रमण काल का नियम (law of period):- किसी ग्रह के सूर्य के परितः परिक्रमण काल का वर्ग सूर्य से उस ग्रह की औसत दूरी के घन के अनुक्रमानुपाती होता है।

इस नियम का यह भी अर्थ है कि ग्रह सूर्य से जितना अधिक दूर होगा उसका परिक्रमण काल उतना ही अधिक होगा।

2. न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton’s law of Gravitation):- दो कणों के बीच लगने वाला गुरुत्वाकर्षण बल कणों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

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9. श्यानता तथा द्रवों का प्रवाह Topic of Physics:- 

1. तरल (Liquid) :- जिन पदार्थों में बहने का गुण होता है, वे तरल कहलाते हैं। द्रव एवं गैस दोनों तरल पदार्थ हैं।

2. आदर्श तरल (Ideal liquid):- वैसे तरल जिनमें शून्य संपीड्यता एवं शून्य श्यानता का गुण हो, उसे आदर्श तरल कहते हैं।

3. शून्य संपीड्यता (Zero compressibility) :- यदि तरल को दबाने पर उसके आयतन अथवा घनत्व में कोई परिवर्तन नहीं हो, तो उसे शून्य संपीड्यता या असंपीड्य (Non compressible) कहा जाता है। गैसों की अपेक्षा द्रव अधिक असंपीड्य होते हैं।

4. शून्य श्यानता (Zero viscosity):- तरल के प्रवाह में उनकी विभिन्न परतों के बीच आपेक्षिक गति होती है जिसके कारण परतों के बीच आंतरिक घर्षण बल लगता है। द्रव या गैस के प्रवाह में आंतरिक घर्षण के इस गुण को श्यानता कहते हैं। आदर्श तरल के लिए श्यानता का मान शून्य माना जाता है। व्यवहार में कोई भी तरल श्यानता रहित नहीं होता। गैसों में श्यानता द्रवों की अपेक्षा बहुत कम होती है।

5. आंदर्श तरल का प्रवाह दो प्रकार का होता है-

5.1 धारारेखीय प्रवाह (Streamline flow) : जब कोई द्रव इस प्रकार प्रवाहित होता है कि उसका प्रत्येक कण अपने से ठीक आगे वाले कण के मार्ग का अनुसरण करता है, तो द्रव के प्रवाह को धारारेखीय प्रवाह कहते हैं तथा कण के मार्ग को धारा-रेखा (streamline) कहते हैं।

नोट : किसी द्रव का प्रवाह धारारेखी तभी तक रहता है, जब तक कि उसका वेग एक निश्चित वेग से कम होता है। इस निश्चित वेग को क्रांतिक वेग (critical velocity) कहते हैं। अर्थात् किसी द्रव के प्रवाह का वह अधिकतम वेग जहाँ तक उसका प्रवाह धारारेखीय होता है, उस द्रव का क्रांतिक वेग कहलाता है।

5.2 विक्षुब्ध प्रवाह (Turbulent flow): जब कोई द्रव इस प्रकार गति करता है कि मार्ग के किसी बिन्दु से होकर गुजरने वाले विभिन्न कणों के वेग भिन्न-भिन्न होते हैं, तो वह विक्षुब्ध प्रवाह कहलाता है।

नोट: धारारेखीय प्रवाह तरल के श्यानता गुणांक (n) से निर्धारित होता है और विक्षुब्ध प्रवाह तरल के धनत्व (p) से निर्धारित होता है।

6.श्यान बल (Viscous force):- द्रव की विभिन्न परतों (layers) के बीच कार्य करने वाले आन्तरिक घर्षण बल को श्यान बल कहते हैं।

7. श्यानता (Viscosity) :- द्रव का वह गुण जिसके कारण वह विभिन्न परतों में होने वाली आपेक्षिक गति का विरोध करता है, श्यानता कहलाता है। गैसों की श्यानता द्रवों की श्यानता की तुलना में बहुत कम लगभग होती है। जब एक ही पदार्थ की विभिन्न परतों के सापेक्ष गति हो । यही कारण है कि ठोसों में श्यानता नहीं होती है। द्रवों में श्यानता का कारण द्रव के अणुओं के बीच कार्य करने वाला ससंजक बल है। गैसों में श्यानता का कारण अणुओं की एक परत से दूसरी परत में अणुओं का विसरण है। ताप बढ़ने पर द्रवों की श्यानता घट जाती है, परन्तु गैसों की श्यानता बढ़ जाती है। द्रवों की श्यानता दाब बढ़ने पर बढ़ती है। गैसों की श्यानता पर दाब का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।

10. पृष्ठ तनाव Physics Notes Topics:-

1. ससंजक बल (Cohesive force) :-  एक ही प्रकार के पदार्थ के अणुओं के मध्य लगने वाला आकर्षण बल, ससंजक बल कहलाता है। ठोसों की निश्चित आकृति उनके अणुओं के मध्य लगने वाले प्रबल ससंजक बलों के कारण ही होती है। द्रवों में ससंजक बल ठोसों की तुलना में कम होता है इसीलिए द्रवों का आयतन सुनिश्चित लेकिन आकार अनिश्चित होता है। गैसों में ससंजक बल नगण्य होता है इसीलिए इसका आयतन एवं आकार दोनों अनिश्चित होता है।

2. आसंजक बल (Adhesive force):- दो भिन्न पदार्थों के अणुओं के बीच लगने वाला आकर्षण बल आसंजक बल कहलाता है । जिस दूरी तक यह बल प्रभावी रहता है, उसे आण्विक परास कहते हैं। आसंजक बल के कारण ही पानी काँच की प्लेट को गीला कर देता है।

नोट: दो अणुओं के बीच की उस अधिकतम दूरी को जिस पर उनके बीच अन्तराण्विक आकर्षण बल कार्य करता है, आण्विक परास कहलाता है। इसे साधारणतः ‘C’ से प्रदर्शित करते हैं। इसका मान C = 102 m होता है।

3. ससंजक तथा आसंजक बल गुरुत्वाकर्षण बलों से भिन्न होते हैं और व्युत्क्रम वर्ग के नियम (Fa22) का पालन नहीं करते हैं । इन बलों की प्रकृति विद्युतीय होती है। अन्तराण्विक दूरी बढ़ने पर इनके बीच लगने वाला आकर्षण बल तेजी से कम होता जाता है।

4. प्रभाव गोला (Effective sphere):- किसी अणु को केन्द्र मानकर उसके चारों ओर आण्विक परास के बराबर की त्रिज्या R का एक खींचा गया । कल्पित गोला उस अणु का प्रभावी गोला या आण्विक सक्रियता का गोला कहा जाता है ।

5. पृष्ठ फिल्म (Surface film):- किसी द्रव के मुक्त पृष्ठ तथा इसके समांतर आण्विक परास R की दूरी पर खींचे गये एक कल्पित समतल के बीच निहित द्रव की पतली फिल्म को पृष्ठ फिल्म (Surface film) कहा जाता है। द्रवों की फिल्म में दो पृष्ठ होते हैं तथा इसकी मोटाई लगभग 10 m होती है।

6. पृष्ठ तनाव (Surface tension ) :- पृष्ठ तनाव स्थिर द्रव का वह गुण है जिसके कारण द्रव का पृष्ठ अपना क्षेत्रफल न्यूनतम करने का प्रयास करता है और एक
तनी हुई झिल्ली की भाँति व्यवहार करता है।

यदि किसी द्रव की सतह पर काल्पनिक रेखा खींची जाये तो इस रेखा के किसी एक ओर इकाई लंबाई पर लगने वाला अभिलम्बवत् बल पृष्ठ तनाव कहलाता है। इसे T से प्रदर्शित करते हैं।

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