
Chemistry Notes in Hindi Free PDF Download
आज हम आपके लिए लेकर आये हे बहुत ही आसान और सरल जनरल साइंस के टॉपिक केमिस्ट्री के नोट्स पीडीऍफ़ लेकर आये हे जो आपके लिए आपकी सभी प्रकार की जनरल साइंस की परीक्षा में आसानी से सभी प्रकार के परीक्षा प्र्शन को कर सके इसलिए आप इन नोट्स पीडीऍफ़ को निचे दिए गए लिंक से डाउनलोड करे और आराम से अपनी परीक्षा की तैयारी करे।
केमिस्ट्री नोट्स पीडीऍफ़ आपको विभिन्न विषयों जैसे रसायन विज्ञान, अणु रसायन, उत्पाद रसायन, रसायनों का उत्पादन, रासायनिक अभिक्रियाएं, रासायनिक संरचना, रासायनिक बंध, रासायनिक अभिक्रिया की गति, रसायन विद्युत आदि के बारे में जानकारी प्रदान करता है।
रसायन विज्ञान (Chemistry) विज्ञान का ही एक विषय है, जिसके अंदर आपको पदार्थों के बारे में और उसके अंदर के गुणों, और उसकी संघटन, और उसकी संरचना के बारे में बताया गया जाता हे तो उनमें होने वाले परिवर्तनों और उसके अंदर होने वाली इनकी क्रिया प्रतिक्रिया का अध्ययन किया जाता है। Chemistry अर्थात् ‘रसायन विज्ञान’ शब्द की उत्पत्ति मिस्र के प्राचीन नाम कीमिया (Chemea) से हुई है, जिसका अर्थ है-काला रंग। प्रारंभ में रसायन विज्ञान के अध्ययन को केमिटेकिंग (Chemeteching) कहा जाता था।
केमिस्ट्री में द्रव्य पदार्थो के अंतर्गत आने वाले द्रव्य के अंदर उनके संघटन तथा उसके अंदर के अति सूक्ष्म कणों की संरचना के अंदर होने वाले संघटो के बारे में पढ़ा जाता है। इसके अतिरिक्त द्रव्य के अंदर होने वाले गुणों, द्रव्यों में परस्पर सयोगिक के नियम, ऊष्मा आदि ऊर्जाओं का द्रव्य पर प्रभाव, यौगिकों का संश्लेषण, जटिल व मिश्रित पदार्थों से सरल व शुद्ध पदार्थ अलग करना आदि का अध्ययन भी रसायन विज्ञान के अंतर्गत किया जाता है। लेवायसिये (Lavoisier) को ‘आधुनिक रसायन विज्ञान का जन्मदाता’ कहा जाता है।
रसायन विज्ञान की शाखाएँ (Branches of Chemistry):-
1. भौतिक रसायन (Physical Chemistry):- इसके अंदर रासायनिक विज्ञानं के अंदर होने वाली सभी प्रकार की अभिक्रिया और उसके अंदर होने वाले सभी प्रकार के नियमों तथा सभी सिद्धांतों का अध्ययन किया जाता है।
2. अकार्बनिक रसायन (Inorganic Chemistry):- इसके अंतर्गत सभी प्रकार की अकार्बनिक तत्वों और उसके अंदर होने वाली किर्याओ को और उनके यौगिकों के बारे में जानकारी मिलती है।
3. कार्बनिक रसायन (Organic Chemistry):- इसके अंदर आपको कार्बन से संबधित सभी प्रकार के यौगिकों का मिश्रण और उसके बारे में अलग अलग प्रकार का अध्ययन किया जाता है।
4. औद्योगिक रसायन (Industrial Chemistry):- इसमें पदार्थों का वृहत् परिमाण में निर्माण करने से संबंधित नियमों, अभिक्रियाओं, विधियों आदि का अध्ययन किया जाता है।
5. जैव रसायन (Bio-Science):- इसके अंतर्गत जीवधारियों में होने वाले रासायनिक अभिक्रिया तथा जन्तुओं एवं वनस्पतियों से प्राप्त पदार्थों का अध्ययन किया जाता है।
6. कृषि रसायन (Farming Science):- इसके अंतर्गत कृषि से संबंधित रसायन जैसे जीवाणुनाशक, मृदा के संघटन आदि का अध्ययन किया जाता है।
7. औषधि रसायन (Medication Science):– इसके अंतर्गत मनुष्य के प्रयोग में आने वाली औषधियाँ, उनके संघटन तथा बनाने की विधियों का अध्ययन किया जाता है।
8. विश्लेषिक रसायन (Logical Science ):- इसमें विभिन्न पदार्थों की पहचान, आयतन व मात्रा का अनुमापन किया जाता है।
Chemistry Notes PDF Topics:-
1. भौतिक रसायन:- पदार्थों की अवस्थाएँ, परमाणु द्रव्यमान इकाई एवं मोल संकल्पना, परमाणु संरचना, रेडियोसक्रियता, रासायनिक बंधन, ऑक्सीकरण-अवकरण, अम्ल, भस्म और लवण, रासायनिक संकेत, सूत्र और समीकरण, रासायनिक अभिक्रियाओं में ऊर्जा परिवर्तन, विलयन, गैसीय नियम, रासायनिक गतिकी एवं रासायनिक साम्य, वैद्युत रसायन, ईंधन |
II. अकार्बनिक रसायन:- तत्वों का आवर्ती वर्गीकरण, धातुकर्मीय उपचार, धातुएँ, अधातुएँ, अकार्बनिक रसायन की प्रमुख घटनाएँ, मानव निर्मित पदार्थ ।
III कार्बनिक रसायन:- कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण, कार्बनिक रसायन की प्रमुख घटनाएँ, हाइड्रोकार्बन, प्रमुख कार्बनिक यौगिक, कार्बनिक यौगिकों के उपयोग, ऐल्कोहलीय पेय, कार्बनिक अम्लों के प्राकृतिक स्रोत, ऐल्कोहॉल सम्बन्धी शब्दावली, पेट्रोलियम, साबुन तथा अपमार्जक, तेल एवं वसा, मोम, प्लास्टिक, रबड़, रेशे, विस्फोटक, औषधि एवं रसायन ।
IV विविध रसायन:- विज्ञान से सम्बन्धित महत्वपूर्ण खोज एवं आविष्कार, रासायनिक पदार्थों के व्यापारिक नाम एवं उनके रासायनिक सूत्र, मिश्रधातुएँ, वस्तुनिष्ठ प्रश्न ।
1. भौतिक रसायन Chemistry Notes Topics:-
1. पदार्थों की अवस्थाएँ:- द्रव्य वह सामग्री है, जिसमें भार हो, जो स्थान ग्रहण करे, जो दबाव डाल सके एवं अवरोध उत्पन्न कर सके, जिसमें जड़ता का गुण हो, जिसकी अवस्था में ऊर्जा द्वारा परिवर्तन लाया जा सके, जो विभाजित किया जा सके तथा जिसके अस्तित्व का हम अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा अनुभव कर सकें।
पदार्थ (Substance):- द्रव्य के विभिन्न प्रकार को पदार्थ कहते हैं। अतः पदार्थ एक विशेष प्रकार का द्रव्य है, जो निश्चित गुण एवं संघटन वाला होता है, जैसे—कागज, लकड़ी, मिट्टी, लोहा, मोम, जल, दूध, वायु, ऑक्सीजन, संगमरमर, चूना आदि ।
वस्तु (Object):- एक पदार्थ या अनेक पदार्थों के मिश्रण से बनने वाली विशेष गुण वाली सामग्री को ‘वस्तु’ (Object) कहते हैं, जैसे-पुस्तक, पेन्सिल, नाव, वायुयान, चाकू, छेड, थाली, गिलास, पेण्ट, कमीज, अंगूठी आदि । मोट संसार की सभी वस्तुएँ द्रव्यों अर्थात् पदार्थों से बनी हैं।
आधुनिक विज्ञान में पदार्थ को दो मुख्य प्रकार से विभाजित किया गया है-
(a) भौतिक अवस्था के आधार पर, उदाहरण-ठोस, द्रव एवं गैस और
(b) रासायनिक संघटन के आधार पर, उदाहरण-तत्व, यौगिक एवं मिश्रण।
पदार्थों की भौतिक अवस्थाएँ (Physical States of Substances):- भौतिक अवस्था के आधार पर पदार्थों को तीन वर्गों में बांटा गया है।
ये तीन वर्ग हैं—ठोस (Solid), द्रव (Liquid) तथा गैस (Gas)। दूसरे शब्दों में पदार्थ इन्हीं तीन अवस्थाओं में रहते हैं। किसी पदार्थ की अवस्था (ठोस, द्रव या गैस) उसके अन्तराण्विक बल (Intermolecular Force) पर निर्भर करती है।
तत्व (Element):- तत्व वह मौलिक पृथ्वी पर पाये जाने वाले प्रमुख पदार्थ है, जिसे किसी भी भौतिक या तत्व एवं उनका प्रतिशत रासायनिक विधि द्वारा न तो दो या दो से अधिक सर्वथा भिन्न गुणों वाले पदार्थों में विभाजित किया जा सकता है, और न ही दो या दो से अधिक पदार्थों के बीच संयोग कराकर संश्लेषित किया जा सकता है। दूसरे शब्दों में, वह पदार्थ जो एक ही प्रकार के परमाणुओं से मिलकर बना होता है, तत्व कहलाता है।
इलेक्ट्रॉनिक संरचना के अनुसार तत्व वह पदार्थ है, जिसके प्रत्येक परमाणु का नाभिकीय आवेश समान होता है। हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सोडियम, लोहा, तांबा, सोना, चांदी, प्लैटिनम आदि तत्वों के प्रमुख उदाहरण हैं ।
तत्व दो प्रकार के होते हैं— धातु (Metal) और अधातु (Non-Metal)।
धातु तत्व विद्युत् और ऊष्मा के सुचालक होते हैं तथा ये ठोस अवस्था में आघातवर्द्धनीय (Malleable) और तन्य (Ductile) होते हैं। लोहा, ताँबा, ऐलुमिनियम, चाँदी, सोना, प्लैटिनम आदि धातु हैं। अधातु तत्व विद्युत् और ऊष्मा के कुचालक होते हैं। साथ ही साथ अधातु तत्व भुरभुरे (Brittle) होते हैं और प्रहार करने पर चूर-चूर हो जाते हैं। गंधक, फॉस्फोरस, ऑक्सीजन, ब्रोमीन इत्यादि लोहा अधातु हैं।
भौतिक अवस्था के आधार पर तत्वों को ठोस तत्व, द्रव तत्व तथा गैस तत्व में विभाजित किया गया है। अधिसंख्य तत्व ठोस रूप में ही पाये जाते हैं। (जैसे-लोहा, सोना, तांबा, कार्बन, गंधक आदि) कुछ तत्व द्रव के रूप में पाये जाते हैं। (जैसे—पारा, ब्रोमीन आदि), जबकि कुछ तत्व गैसीय अवस्था में पाये जाते हैं। (जैसे—हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, क्लोरीन आदि) । वर्तमान समय में 112 तत्वों की खोज की जा चुकी है। इनमें से 92 तत्व प्रकृति में पाये जाते हैं, जबकि शेष अन्य तत्व वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशालाओं में कृत्रिम तरीकों से संश्लोषित किए गए हैं।
अणु को प्रकार के होते हैं तत्व के अणु एवं यौगिक के अणु स्वतंत्र कणों का निर्माण करते हैं, तो ये कण तत्व के अणु कहलाते हैं। जब एक ही तत्व के एक से अधिक परमाणु मिलकर उसके सूक्ष्मतम उदाहरण के लिए हाइड्रोजन का अणु (1) हाइड्रोजन के वो परमाणुओं से मिलकर बना होता है। जब एक से अधिक तत्वों के परमाणु परम्पर मिलकर सूक्ष्मतम स्वतंत्र कणों का निर्माण करते हैं, तो ये कण के अणु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, मिथेन (CH) का प्रत्येक अणु कार्बन के एक परमाणु तथा हाइड्रोजन के चार परमाणुओं से मिलकर बना होता है।
2. Chemistry Notes PDF परमाणु (Atom) Topic:-
परमाणु (Atom): किसी पदार्थ (तत्व) का वह संभव सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है, परन्तु रासायनिक अभिक्रियाओं में भाग लेता है तथा जिसमें उस पदार्थ के सभी गुण विद्यमान रहते हैं, परमाणु कहलाता है।
मिश्रणों का पृथक्करण (Separation of Mixtures): मिश्रण में उपस्थित घटकों को विभिन्न विधियों द्वारा अलग-अलग किया जाता है। मिश्रणों के पृथक्करण की कुछ सामान्य विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. क्रिस्टलन (Crystallisation) : क्रिस्टलन विधि के द्वारा अकार्बनिक ठोसों में उपस्थित घटकों का पृथक्करण एवं शुद्धीकरण किया जाता है। इसमें उपस्थित अशुद्ध ठोस या मिश्रण को उचित विलायक के साथ मिलाकर गर्म किया जाता है तथा गर्म अवस्था में ही इस विलयन को फनल (Funnel) द्वारा छाना जाता है। छानने के
पश्चात् विलयन को ठंडा किया जाता है। ठंडा होने पर शुद्ध पदार्थ क्रिस्टल के रूप में विलयन से पृथक् हो जाता है और इसमें उपस्थित अशुद्धियाँ मातृ द्रव में घुली रह जाती हैं। इन क्रिस्टलों को छानकर अलग कर सुखा लिया जाता है।
2. आसवन (Distillation): आसवन विधि द्वारा मुख्यतः द्रवों के मिश्रण को पृथक् किया जाता है। जब दो द्रवों के क्वथनांकों में अंतर अधिक होता है तो उनके मिश्रण को इस विधि से पृथक् किया जाता है। आसवन विधि में द्रव को वाष्प में परिणत कर किसी दूसरे स्थान में भेजा जाता है, जहाँ उसे ठंडा कर पुनः द्रव अवस्था में परिवर्तित
कर लिया जाता है। आसवन विधि में पहला प्रक्रम वाष्पन तथा दूसरा प्रक्रम संघनन कहलाता है।
4. प्रभाजी आसवन (Fractional Distillation) : प्रभाजी आसवन विधि के द्वारा उन मिश्रित द्रवों का पृथक्करण किया जाता है, जिनके क्वथनांकों में बहुत कम का अंतर होता है। दूसरे शब्दों में द्रवों के क्वथनांक एक-दूसरे के समीप होते हैं। भूगर्भ से निकाले गये खनिज तेल से शुद्ध पेट्रोल, डीजल, मिट्टी का तेल आदि इसी विधि द्वारा पृथक किये जाते हैं। जलीय वायु (Liquid air) से विभिन्न गैसें भी इसी विधि द्वारा पृथक् किये जाते हैं।
5. वर्णलेखन (Chromatography): वर्णलेखन विधि इस तथ्य पर आधारित है कि किसी मिश्रण के विभिन्न घटकों की अधिशोषण क्षमता भिन्न-भिन्न होती है तथा वे किसी अधिशोषक पदार्थ में विभिन्न दूरियों पर अधिशोषित होते हैं और इस प्रकार पृथक् कर लिए जाते हैं।
6. भाप आसवन (Steam Distillation): भाप आसवन विधि के द्वारा ऐसे कार्बनिक पदार्थों का शुद्धीकरण किया जाता है जो जल में अघुलनशील, परन्तु वाष्प के साथ वाष्पशील होते हैं। इस विधि के द्वारा विशेष रूप में उन पदार्थों का शुद्धीकरण किया जाता है, जो अपने क्वथनांक पर अपघटित हो जाते हैं, कार्बनिक पदार्थों जैसे एसीटोन, मेथिल ऐल्कोहॉल, एसीटल्डिहाइड आदि का शुद्धीकरण भाप आसवन विधि द्वारा ही किया जाता है।
2. परमाणु द्रव्यमान इकाई एवं मोल संकल्पना परमाणु द्रव्यमान इकाई (Atomic Mass Unit): कार्बन (जिसका परमाणु द्रव्यमान 12 होता है) के एक परमाणु के द्रव्यमान के 12वें भाग को परमाणु द्रव्यमान इकाई कहते हैं।
परमाणु द्रव्यमान (Atomic Mass): किसी तत्व का परमाणु द्रव्यमान एक संख्या है, जो यह बतलाती है कि उस तत्व के एक परमाणु का द्रव्यमान कार्बन (परमाणु द्रव्यमान
12) के एक परमाणु के द्रव्यमान के 12वें भाग से कितना गुना भारी है।
मोल (Mole): मोल किसी पदार्थ के परमाणु, अणु अथवा आयन की निश्चित संख्या को व्यक्त करता है। यह संख्या 6.022 x 1023 है। संख्या 6.022 x 1023 जो मोल को प्रकट करता है, को एवोगाड़ो संख्या भी कहते हैं। अतः मोल पदार्थ के कणों की एवोगाड़ी संख्या भी व्यक्त करता है।
पयोगाड़ो संख्या (Avogadro Number): किसी तत्व के एक ग्राम परमाणु (1 मोल) में उपस्थित परमाणुओं की संख्या 6.0221027 होती है या किसी पदार्थ (तत्व या यौगिक) के 1 ग्राम अणु (1 मोल) में उपस्थित अणुओं की संख्या भी इतनी ही अर्थात् 6.022 x 102 होती है। इस संख्या को एवोगाड़ी संख्या कहते हैं। इसे प्रायः N द्वारा सूचित किया जाता है। अतः N = 6.022×1023)
3. परमाणु संरचना जॉन डॉल्टन ने 1803 ई. में परमाणु सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार परमाणु अविभाज्य होता है। लगभग पूरी 19वीं शताब्दी तक यह माना जाता रहा कि परमाणु अविभाज्य है। परन्तु 19वीं शताब्दी के आखिरी दशक में वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया कि परमाणु विभाज्य है तथा परमाणु की एक निश्चित आंतरिक संरचना होती है। आधुनिक अनुसंधानों ने प्रमाणित कर दिया है कि परमाणु कई प्रकार के अति सूक्ष्म कणों से बना होता है, जिनमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन और
न्यूट्रॉन प्रमुख हैं। सभी तत्वों के परमाणु को निर्मित करने वाले इन कणों को मौलिक कण (Fundamental Particles) कहा जाता है।
परमाणु और अणु Chemistry Notes PDF :-
परमाणु (Iota): परमाणु किसी तत्व का वह छोटा-से-छोटा कण है, जो किसी भी रासायनिक अभिक्रिया में भाग ले सकता है, परन्तु स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है।अणु (Particle): किसी तत्व या यौगिक का वह छोटा-से-छोटा कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, अणु कहलाता है।
परमाणु के मौलिक कण
1. इलेक्ट्रॉन (Electron) : इलेक्ट्रॉन की खोज का श्रेय जे.जे. टॉम्सन को है। इलेक्ट्रॉन एक ऐसा कण है, जिसका द्रव्यमान लगभग शून्य होता है तथा जिस पर इकाई ऋण आवेश रहता है ।
2. प्रोटॉन (Proton): परमाणु के अंदर प्रोटॉन एक ऐसा सूक्ष्म कण है, जिसका सापेक्ष द्रव्यमान हाइड्रोजन परमाणु के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है और इस पर इकाई धन आवेश रहता है। परमाणु में धन आवेश युक्त इस कण की खोज का श्रेय गोल्डस्टीन को है।
3. न्यूट्रॉन (Neutron) : परमाणु के अंदर न्यूट्रॉन एक ऐसा सूक्ष्म कण है, जिसका द्रव्यमान प्रोटॉन के द्रव्यमान के लगभग बराबर होता है, लेकिन इस पर कोई आवेश नहीं होता है। अर्थात् न्यूट्रॉन एक उदासीन कण है। न्यूट्रॉन की खोज 1932 ई. में चैडविक ने बेरीलियम धातु पर -कणों से आघात कराकर की। रदरफोर्ड का नाभिकीय सिद्धांत
(Rutherford’s Nuclear Theory): 1911 ई. में लॉर्ड रदरफोर्ड (Lord Rutherford) ने एक अति महत्वपूर्ण प्रयोग करके परमाणु की आंतरिक व्यवस्था से संबंधित एक आश्चर्यजनक तथ्य का पता लगाया। रदरफोर्ड द्वारा किये गए इस प्रयोग को रदरफोर्ड का प्रकीर्णन प्रयोग (Rutherford’s Scattiring Experiment) कहा जाता है।
1. परमाणु में इलेक्ट्रॉनों से घिरे केन्द्र में प्रोटॉन का एक छोटा-सा किन्तु भारी नाभिक होता है।
2. परमाणु के अंदर का अधिकांश भाग खाली होता है।
3. परमाणु गोलीय (Spherical) होता है।
4. परमाणु के नाभिक का आकार परमाणु के आकार की तुलना में अत्यन्त छोटा होता है।
5. परमाणु के स्थायित्व की व्याख्या के लिए रदरफोर्ड ने अनुमान लगाया कि परमाणु सौरमंडल की तरह होता है। परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर वृत्ताकार पथों में उसी तरह अनवरत परिक्रमा करते रहते हैं, जिस तरह सूर्य के चारों ओर विभिन्न नक्षत्र करते हैं। इन वृत्ताकार पथों की कक्षाए (Orbits) कहा जाता है। ऐसा होने से नामिक तथा इलेक्ट्रॉन के बीच कार्यरत स्थिर विद्युत आकर्षण बल इलेक्ट्रॉन के वेग से उत्पन्न केन्द्राभिसारी बल (Centrifugal force) के बराबर होता
है। इस परमाणु में उपस्थित इलेक्ट्रॉन अपनी कक्षाओं में अनवरत गतिशील रहते हुए परमाणु को स्थायित्व प्रदान करते हैं। रदरफोर्ड द्वारा प्रस्तुत परमाणु के उपर्युक्त स्वरूप को रदरफोर्ड का परमाणु स्वरूप (Rutherford’s Model of Atom) कहा जाता है।
रदरफोर्ड के परमाणु स्वरूप के दोष
1. परमाणु के इस मॉडल की सबसे महत्वपूर्ण त्रुटि इसके स्थायित्व से संबंधित है।
2. रदरफोर्ड का परमाणु मॉडल यह नहीं स्पष्ट करता है कि नाभिक के चारों ओर इलेक्ट्रॉन निश्चित कक्षाओं में चक्कर लगाते हैं या यत्र-तत्र |
3. तत्व के परमाणु से प्राप्त वर्णपट (Atomic Spectra) में स्पष्ट रेखाएँ प्राप्त होती हैं, जो इस बात की पुष्टि करती है कि परमाणु से उत्सर्जित होने वाली विकिरण असतत् होती है। रदरफोर्ड के परमाणु मॉडल के आधार पर परमाणु वर्णपट की स्पष्ट रेखाओं के निर्माण की व्याख्या करना संभव नहीं है।
प्टैंक का क्वांटम सिद्धांत (Planck’s Quantum Theory): सन् 1901 में प्लैंक ने तप्त काली वस्तुओं से उत्सर्जित विभिन्न कम्पनावृत्तियों वाली प्रकाश ऊर्जा के अध्ययन से एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया । इस सिद्धांत के अनुसार “किसी वस्तु से प्रकाश और ऊष्मा जैसी विकिरण ऊर्जा का उत्सर्जन या अवशोषण सतत नहीं होता, बल्कि
असतत रूप से छोटे-छोटे संवेष्ट (Packets) में होता है।” इन छोटे संवेष्टों को क्वांटम (Quantum) कहते हैं। एक क्वांटम की ऊर्जा को निम्नलिखित समीकरण के द्वारा व्यक्त किया जाता है-
E-hu (जहाँ h प्लैंक स्थिरांक, विकिरण की
कम्पनावृत्ति, E = क्वांटम की ऊर्जा)
बोर का परमाणु मॉडल (Bohr’s Atomic Model) : रदरफोर्ड मॉडल की त्रुटियों को दूर करने तथा हाइड्रोजन परमाणु के स्पेक्ट्रम को समझाने के लिए नील्स बोर ने मैक्स प्लांक (Max Planck) के क्वांटम सिद्धांत का सहारा लेकर एक सिद्धांत का प्रतिपादन किया जिसे बोर का परमाणु सिद्धान्त कहते हैं । इस सिद्धांत की मुख्य बातें इस प्रकार हैं-
1. नाभिक के चारों ओर चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉन अनिश्चित कक्षाओं में परिभ्रमण नहीं करते बल्कि ये कुछ चुनी हुई अनुमेय कक्षाओं में ही परिभ्रमण करते हैं।
2. जब कोई इलेक्ट्रॉन किसी स्थिर कक्षा में रहकर नाभिक के चारों ओर परिभ्रमण करता है, तो इस क्रिया में उससे ऊर्जा का ह्रास नहीं होता है।
3. कुछ ऊर्जा का अवशोषण करके इलेक्ट्रॉन नाभिक के किसी निकट वाली कक्षा से दूर वाली कक्षा पर कूदता है। जब वह दूर वाली कक्षा से किसी भीतर स्थित कक्षा पर कूदता है, तो इस क्रिया कुछ ऊर्जा का उत्सर्जन होता है । ऊर्जा का उत्सर्जन होने पर विद्युत् चुम्बकीय किरणें निकलती हैं और ऊर्जा का अवशोषण होने पर इन किरणों का अवशोषण होता है ।
4. अनुमेय कक्षाएँ (Permissible Orbits) वे हैं, जिनके लिए कोणीय का पूर्णांक अपवर्त्य होता है।
परमाणु संख्या (Atomic Number): किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित इकाई धन आवेशों की कुल संख्या या उस तत्व के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों की कुल संख्या को उस तत्व की परमाणु संख्या कहते हैं। इसे Z से सूचित किया जाता है। किसी तत्व की परमाणु संख्या उस तत्व का मौलिक गुण होता है।
अतः परमाणु संख्या (Z) = नाभिक में इकाई धन आवेश की कुल संख्या
= नाभिकीय आवेश
= नाभिक में प्रोटॉन की कुल संख्या (p)
कक्षाओं में इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या (e)
या, Z = p = e
उदाहरण:
(a) हाइड्रोजन (H) परमाणु के नाभिक में सिर्फ 1 प्रोटॉन रहता है। अतः हाइड्रोजन की परमाणु संख्या 1 होती है।
(b) कार्बन (C) परमाणु के नाभिक में 6 प्रोटॉन रहते हैं। अतः कार्बन की परमाणु संख्या 6 होती है ।
द्रव्यमान संख्या (Mass Number) : किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्याओं के योगफल को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहते हैं। नाभिक में प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों के योग को न्यूक्लिऑन (Nucleon) कहा जाता है।
अतः द्रव्यमान संख्या (A) = प्रोटॉन की संख्या (p) + न्यूट्रॉन की संख्या (1)
= न्यूक्लिऑनों की कुल संख्या
= या, A = n + p
द्रव्यमान संख्या पूर्णांक होती है।
परमाण्विक प्रतीक का निरूपण (Representation of Atomic Symbol): एक उदासीन परमाणु में नाभिक के बाहर इलेक्ट्रॉनों की संख्या नाभिक में उपस्थित धन आवेशों के इकाइयों की संख्या के बराबर होती है। किसी उदासीन परमाणु X के प्रतीक का निरूपण इस प्रकार से किया जाता है-
2X4 जहाँ A = द्रव्यमान संख्या (Mass Number)
Z = परमाणु संख्या (Atomic Number)
द्रव्यमान संख्या (Mass Number): किसी तत्व के परमाणु के नाभिक में उपस्थित प्रोटॉन और न्यूट्रॉन की संख्याओं के योगफल को उस परमाणु की द्रव्यमान संख्या कहते हैं। नाभिक में प्रोटॉनों और न्यूट्रॉनों के योग को न्यूक्लिऑन (Nucleon) कहा जाता है।
अतः द्रव्यमान संख्या (A) – प्रोटॉन की संख्या (p) + न्यूट्रॉन की संख्या (1)
= न्यूक्लिऑनों की कुल संख्या
= या, A =n+ p
द्रव्यमान संख्या पूर्णांक होती है।
परमाण्विक प्रतीक का निरूपण (Representation of Atomic Symbol): एक उदासीन परमाणु में नाभिक के बाहर इलेक्ट्रॉनों संख्या नाभिक में उपस्थित धन आवेशों के इकाइयों की संख्या के बराबर होती है। किसी उदासीन परमाणु X के प्रतीक का निरूपण इस प्रकार से किया जाता है—
= XA जहाँ A = द्रव्यमान संख्या (Mass Number)
Z = परमाणु संख्या (Atomic Number)
बोर-ब्यूरी योजना (Bohr-Burry Scheme) : किसी तत्व के परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉनों की व्यवस्था बतलाने के लिए बोर एवं ब्यूरी ने 1921 ई. में अलग-अलग योजनाएँ प्रस्तुत कीं। चूँकि दोनों वैज्ञानिकों की प्रस्तावित योजना में काफी समानता थी। इसलिए इसे बोर-ब्यूरी योजना (Bohr-Burry
Scheme) कहा गया। इसके अनुसार-
1. किसी परमाणु की विभिन्न कक्षाओं में चक्कर लगाने वाले इलेक्ट्रॉनों की अधिकतम संख्या 2n2 होती है, जहाँ n कक्षा-संख्या है।
2. किसी परमाणु की सबसे बाहरी कक्षा (Outermost Orbit) में 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं रह सकते हैं।
3. किसी परमाणु की बाहूयतम कक्षा से पहले वाली कक्षा (Penultimate Orbit) में 18 से अधिक इलेक्ट्रॉन नहीं रह सकते हैं, चाहे उसकी कक्षा-संख्या कुछ भी क्यों न हो।
4. किसी परमाणु की बाह्यतम कक्षा में 2 से अधिक और उससे पहले वाली कक्षा में 9 से अधिक इलेक्ट्रॉन तब तक उपस्थित नहीं रह सकते हैं, जबतक कि अंतिम (यानी बाह्यतम) से तीसरी कक्षा में इलेक्ट्रॉन की संख्या नियम (1) के अनुसार पूर्ण न हो जाए।
कक्षा या शेल (Shell): जब कोई इलेक्ट्रॉन किसी निश्चित कक्षा में परिभ्रमण करता है, तो उसके साथ ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा रहती है। इसलिए इन कक्षाओं को ऊर्जा स्तर (Energy Levels) भी कहते हैं। इन ऊर्जा स्तरों को स्पेक्ट्रोस्कोपी में प्रयुक्त होने वाले K, L, M, N, O, P, Q अक्षरों द्वारा सूचित किया जाता है। इन ऊर्जा स्तरों को शेल भी कहते हैं। नाभिक के सबसे निकट वाले शेल (n = 1) को K द्वारा, तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉन और रासायनिक गुणों में सम्बन्ध
1. संयोजी इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा परमाणु में उपस्थित अन्य इलेक्ट्रॉनों की अपेक्षा अधिक होती है ।
2. किसी तत्व के परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉन द्वारा उस तत्व की संयोजकता निर्धारित होती है ।
3. विभिन्न तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान हो, तो उनके रासायनिक गुणों में समानता पायी जाती है।
4. विभिन्न तत्वों के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न-भिन्न हो, तो उनके रासायनिक गुणों में भिन्नता होती है ।
5. किसी तत्व के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व की वर्ग संख्या के बराबर होती है ।
संयोजी इलेक्ट्रॉन का महत्व
1. रासायनिक अभिक्रिया में परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉन ही भाग लेते हैं।
2. किसी परमाणु के संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या द्वारा उस तत्व की संयोजकता निर्धारित होती है ।
3. किसी तत्व के परमाणु में विद्यमान संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व की वर्ग संख्या के बराबर होती है। किसी तत्व के परमाणु के संयोजी शेल की संख्या आवर्त सारणी में उस तत्व का आवर्त निर्धारित करती है।
4. किसी तत्व की रासायनिक प्रकृति उसके परमाणु में विद्यमान संयोजी इलेक्ट्रॉन की संख्या पर निर्भर करती है।
Importance of सामान्य विज्ञान in Chemistry Notes PDF:-
गैसों के परमाणु की बाहयतम कक्षा में बाहर से किसी इलेक्ट्रॉन को – प्रविष्ट कराना या उसमें से किसी इलेक्ट्रॉन को बाहर निकाल देना संभव नहीं है। इसी कारण अक्रिय गैसों के परमाणुओं की बाहयतम कक्षा में उपस्थित इलेक्ट्रॉन रासायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं ले सकते। अतः इन गैसों के परमाणु मुक्त अवस्था में रहते हैं। इनके परमाणु और अणु एक समान होते हैं। अर्थात् अक्रिय गैसों के अणु एकपरमाणुक (Monoatomic) होते हैं।
अक्रिय गैसों को छोड़कर अन्य जितने भी तत्व हैं, उनके परमाणु की बाह्यतम कक्षा अस्थायी होती है, क्योंकि उनमें 8 से कम इलेक्ट्रॉन होते हैं। वे अपनी बाह्यतम कक्षा में अपने निकटतम अक्रिय गैस की भाँति इलेक्ट्रॉन प्राप्त कर लेने की प्रवृत्ति रखते हैं, ताकि वे स्थायी बन जाय। इसी कारण, तत्वों के बीच रासायनिक संयोग होता है।
अष्टक पूर्ण करने की प्रक्रिया (Process of Completion of the Octet): कोई भी परमाणु अक्रिय गैसों की इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था तीन प्रकार से प्राप्त करता है-
1. किसी दूसरे परमाणु को अपना एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों का त्याग करके ।
2. किसी दूसरे परमाणु से एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों को प्राप्त करके।
3. किसी दूसरे परमाणु के साथ एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों का साझा करके ।
आयन (Ions):- विद्युत् आवेशयुक्त परमाणु या परमाणुओं के समूह को आयन कहा जाता है। उदाहरण के लिए, सोडियम आयन (Na’), मैग्नीशियम आयन (Mg ++), क्लोराइड आयन (CIT), सल्फेट आयन (SO, –), कार्बोनेट आयन (CO3 ) आदि । आयन दो प्रकार के होते हैं-
1. धनायन (Cation): जिस आयन पर धन आवेश (Positive Charge) होता है, उसे धनायन कहते हैं। उदाहरण के लिए, सोडियम आयन (Na’) और मैग्नीशियम आयन (Mg ++) धनायन हैं।
धन आयन का निर्माण परमाणु से एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के निकल जाने से होता है।
सभी धातु तत्वों के आयन धनायन होते हैं। सिर्फ हाइड्रोजन (H+) और अमोनियम आयन (NH4) अधातु तत्वों के बने होते हैं।
2. ऋणायन (Anion): जिस आयन पर ऋण आवेश होता है, उसे ऋणायन कहते हैं। उदाहरण के लिए, क्लोराइड आयन (CI), ऑक्साइड आयन (O), सल्फेट आयन (SO4), कार्बोनेट आयन (CO3 -) आदि ऋणायन हैं। ऋणायनों का निर्माण किसी एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों के ग्रहण करने के कारण होता है।
सभी अधातुओं के आयन ऋणायन (Anion) होते हैं। सामान्यतः धातु तत्वों के परमाणुओं में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन त्यागकर धनायन में बदल जाने की प्रवृत्ति के कारण ये विद्युत् थनात्मक तत्व कहलाते हैं। इसके विपरीत अधातु तत्वों के परमाणुओं में एक या एक से अधिक इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके ऋणायन में बदल जाने की प्रवृत्ति के कारण ये विद्युत् ऋणात्मक तत्व कहलाते हैं।
6. ऑक्सीकरण-अवकरण, ऑक्सीकरण (Oxidation): ऑक्सीकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप किसी तत्व या यौगिक में विद्युत् ऋणात्मक परमाणुओं या मूलकों का अनुपात बढ़ जाता है अथवा किसी यौगिक में विद्युत् धनात्मक परमाणुओं या मूलकों का अनुपात कम हो जाता है।
2FeCl₂ + Cl +2FeCl,
अवकरण (Reduction) अवकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप किसी तत्व या यौगिक में विद्युत् धनात्मक परमाणुओं या मूलकों का अनुपात बढ़ जाता है अथवा किसी यौगिक में विद्युत् ऋणात्मक परमाणुओं या मूलकों का अनुपात कम हो जाता है।
आयनिक सिद्धान्त के आधार पर ऑक्सीकरण एवं अवकरण की परिभाषा ऑक्सीकरण (Oxidation) ऑक्सीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप किसी आयन पर धन आवेश बढ़ जाता है या ऋण आवेश कम हो जाता है।
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उदाहरण फेरस क्लोराइड (FeCl,) से फेरिक क्लोराइड (FeCl) के बनने में फेरस आयन (Fe++) बदलकर फेरिक आयन (Fe+++) हो जाता है। अर्थात् लोहे के आयन पर धन आवेश बढ़ जाता है।
FeCl2 – FeCl3
Fe+ + Cl + CI – Fe++
+++ + Cl + CI + CI
अवकरण (Reduction) : अवकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसके फलस्वरूप किसी आयन पर धन आवेश घट जाता है, या ऋण आवेश बढ़ जाता है।
उदाहरण: SnCl4 से SnCl, के बनने में टिन आयन पर धन आवेश +4 से घटकर +2 हो जाता है।
SnCl4 → SnCl2
Sn++ 2CI
->>
Sn++++ + 4CI.
इलेक्ट्रॉनिक सिद्धांत के आधार पर ऑक्सीकरण एवं अवकरण की परिभाषा
ऑक्सीकरण (Oxidation): ऑक्सीकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें कोई परमाणु या आयन एक या अधिक इलेक्ट्रॉनों का त्याग कर उच्च विद्युत् धनात्मक अवस्था या निम्न विद्युत् ऋणात्मक अवस्था में परिवर्तित होता है।
अवकरण (Reduction): अवकरण वह रासायनिक प्रक्रिया है, जिसमें कोई परमाणु या आयन इलेक्ट्रॉन ग्रहण करके निम्न विद्युत् धनात्मक अवस्था या उच्च विद्युत् ऋणात्मक अवस्था में परिवर्तित होता है।
उदाहरण सोडियम धातु एवं क्लोरीन गैस के बीच अभिक्रिया के फलस्वरूप सोडियम क्लोराइड बनता है।
2Na + Cl2 → 2NaCl
ऑक्सीकारक एवं अवकारक पदार्थ (Oxidising and Reducing Agent) : जिस पदार्थ का ऑक्सीकरण होता है, वह अवकारक (Reducing Agent) कहलाता है, तथा जिस पदार्थ का अवकरण होता है, वह ऑक्सीकारक (Oxidising Agent) कहलाता है।
ऑक्सीकारक वे पदार्थ होते हैं, जो इलेक्ट्रॉन ग्रहण करते हैं तथा अवकारक वे पदार्थ होते हैं, जो इलेक्ट्रॉन त्याग करते हैं। कुछ मुख्य ऑक्सीकारक पदार्थ निम्नलिखित हैं— ऑक्सीजन (O2), ओजोन (O3), हाइड्रोजन परऑक्साइड (H,O,), नाइट्रिक अम्ल (HNO3), क्लोरीन (CI,), पोटैशियम परमैंगनेट (KMnO), पोटैशियम
डाइक्रोमेट (K_CrzO,), लेड ऑक्साइड (PbO2) आदि ।
कुछ मुख्य अवकारक पदार्थ के उदाहरण हैं-हाइड्रोजन (H)) हाइड्रोजन सल्फाइड (H,S), कार्बन मोनोक्साइड (CO), सल्फर डाइऑक्साइड (SO,), कार्बन (C), हाइड्रायोडिक अम्ल (HI), स्टैनस क्लोराइड (SnCL) आदि ।
7. अम्ल, भस्म और लवण
अम्ल (Acids): अम्ल वे यौगिक पदार्थ हैं, जिनमें एक या एक से अधिक विस्थापनशील हाइड्रोजन परमाणु विद्यमान हो तथा जिन्हें अंशतः या पूर्णतः धातुओं या धातुओं के सदृश आचरण करने वाले मूलकों द्वारा विस्थापित करने पर लवण का निर्माण होता हो, जो क्षारक या क्षार से अभिक्रिया कर लवण एवं जल बनाते हों, जिनके जलीय घोल
नीले लिटमस को लाल करते हों तथा जो स्वाद में खट्टे हों ।
अम्ल के गुण
1. अम्ल स्वाद में खट्टा होता है ।
2. अच्छे एवं प्रबल अम्ल विद्युत् के सुचालक होते हैं।
3. अम्ल धातु से क्रिया करके हाइड्रोजन गैस मुक्त करते हैं।
4. भस्म एवं क्षार से प्रतिक्रिया करके लवण और जल बनाता है।
5. नीले लिटमस पत्र तथा मिथाइल औरेंज को लाल कर देता है।
अम्ल सम्बन्धी आधुनिक विचारधाराएँ
(a) आरहेनियस का आयनिक सिद्धांत (Arrhenius’s Ionic Theory): अम्ल वह पदार्थ है, जो जल में घुलकर हाइड्रोजन आयन (H+) देता है ।
उदाहरण: HCI + जल H, SO + जल HNO3 + जल
CH COOH + जल
H+ (aq) + Cl® (aq)
2H+ (aq) + SO – (aq)
H+ (aq) + NO3® (aq)
H+ (aq) + CH3COO® (aq)
(b) ब्रान्सटेड और लॉरी का सिद्धान्त (Bronsted and Lowry Theory): इस सिद्धांत के अनुसार अम्ल वे पदार्थ हैं, जो किसी दूसरे पदार्थ को प्रोटोन प्रदान करने की क्षमता रखते हैं।